Sunday, April 11, 2010

कवि दीपेन्द्र का जादू टोना.....

दोस्तों आज मैं जिस गीत को आपके नाम करने जा रहा हूँ वह दिसंबर 2007 में हिन्दयुग्म नामक पत्रिका में " कवि दीपेन्द्र का जादू टोना " शीर्षक से छपा था!! कुछ टिप्पणियां भी मिली थीं..जो गीत के साथ संलग्न हैं..आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा...


एक तेरा सपन सलोना है, एक मन का खाली कोना है
मानो हँसना तुम बिन एक पल, दूजे पल तुम बिन रोना है 



क्योँ ऐसी तस्वीर बनाई, जिसमे तुम रंग भर न पाई
क्या इज्जत दूं उस बदली को, जो छाई तो पर बरस ना पाई
यही विधाता की मरजी, कुदरत का जादू टोना है
एक तेरा सपन सलोना है, एक मन का खाली कोना है

इस मृदुल सांस को राह दिखाने, अपनी उपलब्धि पर इतराने
फिर से आये हैं स्वप्न नए कुछ, इन जागी आँखों में सो जाने
तेरी यादों की डोरी को यूँ ही लम्बा होना है
एक तेरा सपन सलोना है, एक मन का खाली कोना है

नया नया मन का दर्पण, हर चेहरे में तेरा दर्शन
जल की भांति निर्मलता पर, तन न्योछावर मन भी अर्पण
सौ टुकडों में बँटे हुए, दर्पण को अभी संजोना है
एक तेरा सपन सलोना है, एक मन का खाली कोना है

एक तेरा सपन सलोना है, एक मन का खाली कोना है
मानो हँसना तुम बिन एक पल, दूजे पल तुम बिन रोना है

कवि दीपेन्द्र

1- दीपेंद्र जी क्या टोना कर डाला है...
   बहुत अच्छे...
   आलोक सिंह "साहिल"
 

2- एक तेरा सपन सलोना है, एक मन का खाली कोना है
   मानो हँसना तुम बिन एक पल, दूजे पल तुम बिन रोना है

   क्योँ ऐसी तस्वीर बनाई, जिसमे तुम रंग भर न पाई
   क्या इज्जत दूं उस बदली को, जो छाई तो पर बरस ना पाई
   बहुत अच्छा !
   सुनीता यादव
   
३- आपमें अच्छे गीतकार के लक्षण दिख रहे हैं.......
   शैलेश भारतवासी