
मेरे जीवन के सारे रस्ते , तुम पर आकर थम जाते हैं
तपी धरा की घोर तपन , और तेज हवा के झोंको ने
कभी जमी और कभी फलक पर , बहुत हमें तड़पाया है
अपनी काया की मिट्टी , और अपनी आँखों के पानी को
अपने ही मन के सांचे में, ढाल के जिसको पाया है
उस मूरत की भोली सूरत पर जाकर ये नयन जम जाते हैं
मेरे जीवन के सारे रस्ते, तुम पर आकर थम जाते हैं
जबसे होश संभाला मैंने , मंजिल देखी तेरे रूप में
छाँव बनी तुम शीतल शीतल, चली साथ में कड़ी धूप में
कदम कभी थकने ना पाए , जब तक तेरा एहसास रहा
मन के दर्पण में देखा है , खुद को तेरे प्रतिरूप में
मेरी आँखों के सारे सपने , तेरी आँखों में रम जाते हैं
मेरे जीवन के सारे रस्ते , तुम पर आकर थम जाते हैं
कवि दीपेंद्र
तपी धरा की घोर तपन , और तेज हवा के झोंको ने
कभी जमी और कभी फलक पर , बहुत हमें तड़पाया है
अपनी काया की मिट्टी , और अपनी आँखों के पानी को
अपने ही मन के सांचे में, ढाल के जिसको पाया है
उस मूरत की भोली सूरत पर जाकर ये नयन जम जाते हैं
मेरे जीवन के सारे रस्ते, तुम पर आकर थम जाते हैं
जबसे होश संभाला मैंने , मंजिल देखी तेरे रूप में
छाँव बनी तुम शीतल शीतल, चली साथ में कड़ी धूप में
कदम कभी थकने ना पाए , जब तक तेरा एहसास रहा
मन के दर्पण में देखा है , खुद को तेरे प्रतिरूप में
मेरी आँखों के सारे सपने , तेरी आँखों में रम जाते हैं
मेरे जीवन के सारे रस्ते , तुम पर आकर थम जाते हैं
कवि दीपेंद्र